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6 Feb 2017 · 1 min read

लहजा वो शराफ़त का अपनाए हुए हैं

देखा है हसीं ख्वाब वो घर आए हुए हैं
हम हैं कि तसव्वुर मे ही शर्माए हुए हैं

करेंगे कैसे कोई गुफ्तगू सनम से हम
के जमीं पर वो नजरें टिकाये हुए हैं

आएगा किसी रोज़ पलट कर वो यही पर
हम दिल को कई रोज़ से बहलाए हुए हैं

सीने को दिया करती है हर वक्त ये ठंडक
ए इश्क तेरी आग जो भड़काए हुए है

जो फ़िक्र मे रहते हैं मिटा दें मेरी हस्ती
लहजा वो शराफत का भी अपनाए हुए हैं

लगता है कि बादल से कोई शर्त लगी है
वो सुब्ह से ज़ुल्फो को जो लहराए हुए हैं

ए जाने जहाँ आपके ये महके खयालात
खुशबू की तरह ज़िन्दगी महकाए हुए हैं

ये मेरी दुआ है हो उन्हे फूल मयस्सर
कांटे जो मेरी राह मे बिखराए हुए हैं

3 Likes · 1 Comment · 492 Views
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