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6 Dec 2016 · 1 min read

रहे मदहोश हम मद में ,न जब तक हार को देखा

रहे मदहोश हम मद में ,न जब तक हार को देखा
हमें तब होश आया जब समय की मार को देखा

गरीबी से कहीं दम तोड़ते बीमार को देखा
उधर मंदिर में पैसों के लगे अम्बार को देखा

बुराई और अच्छाई सदा ही साथ चलती हैं
जहाँ पर फूल को देखा वहीँ पर खार को देखा

हमारे प्यार की नौका फँसी मझधार में जब भी
कभी फिर धार को देखा कभी पतवार को देखा

मिली छोटे नगर जैसी न गर्माहट वो रिश्तों में
महानगरों के हमने जिस किसी परिवार को देखा

यहाँ हम लक्ष्य पाने को,चले चलते रहे हर पल
कभी इंकार को देखा नहीं इकरार को देखा

वही तो जानते हैं मोल जीवन में बहारों के
जिन्होंने आँख से अपनी यहाँ पतझार को देखा

नहीं है भावना अब ‘अर्चना’ राधा किशन जैसी
यहाँ तो हर तरफ बस प्यार के व्यापार को देखा
डॉ अर्चना गुप्ता

2 Likes · 2 Comments · 474 Views
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