याद दिल में तो बसी है तेरी
ग़ज़ल
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बन गयी है मेरी खुशी तेरी
हो चुकी है ये जिन्दगी तेरी
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मीठी बातों से से जग ये लूट लिया
कितनी अच्छी बहादुरी तेरी
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आज छत पर भी मेरे आई है
शुक्रिया चाँद चाँदनी तेरी
?
फूल खिल जाते जब तू हँसती है
भा गयी दिल को ये हँसी तेरी
?
वो सलासिल से बाँधकर पूछे
कह दे ख़्वाहिश जो आख़िरी तेरी
?
ग़म की राहों में देती हैं रस्ता
यादें बनकर के रौशनी तेरी
?
भूलने वाले देख ले आकर
आज भी खलती है कमी तेरी
?
फूल-ओ-चाँद रश्क़ करते हैं
देख कर जानां सादगी तेरी
?
जा रहा बज़्म से नहीं तन्हा
याद दिल में तो है बसी तेरी
?
क्या फ़लक से तू चलके आई है
चाँद से शक्ल —–मिल रही तेरी
?
मात खा जाएँ देख कर “प्रीतम”
फूल कलियाँ —-ये नाजुकी तेरी
?
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
11/09/2017
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2122–1212–22/112
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