मै शब्दो का मूर्तिकार शब्दो का महल बनाता हूं।
मै शब्दो का मूर्तिकार
मै शब्दो का महल बनाता हूं।
धन नही पैसे वाला है
मै संतोष धन कमाता हूं।
अमूर्त कल्पना चिंतन
मेरे दो अस्त्र निराले
मै कविता के संग जीता
कविता के संग पीता खाता हूं।
जीवन साहित्य हवाले
चिंतन संग जगता सोता हूँ ।
मैने जो लिखा कहा है
प्रतिपल होती अनुभूति
मै लिखकर बढता जाता हूँ ।
तब जाकर बनता गीत
शब्द गढता शब्द शिल्पी
हो गयी गीत से प्रीत।
मै शब्दो का मूर्तिकार
मै शब्दो का महल बनाता हूं।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र