मृत्यु के पद चिन्ह ( कविता)
मृत्यु के पद-चिन्ह (कविता)
कैसी नीरवता छाई है चारों और,
ना कोई आहटें ,ना परछाईयाँ,
मरघट सी शांति है हर और ।
कल ही की तो बात है,
यह चमन गुलज़ार था।
हर आँगन में किलकारियां।
यहाँ खुशियों का लगा बाज़ार था।
हरे-भरे वृक्ष थे फल-फूलों से लदे,
और उस पर थे पक्षियों के घोंसले।
मगर आज !
यहाँ ना आँगन ना बच्चे।
ना हरे -भरे वृक्ष ,और ना घोंसले।
कहाँ खो गए यह सब ,
सपने की तरह।
किसने लुटा यह गुलज़ार,
किसने किया यह गुनाह।
दिख रही थी मुझे सब तरफ गहरी खाईयां।
कुछ कदम आगे चलकर देखा तो,
दिख गयी जाति हुई काली -स्याह भयावह
परछाईयाँ।
निस्संदेह इन्हीं दानवों के रूप में,
यहाँ मृत्यु ने छोड़े अपने पद चिन्ह ।