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30 Dec 2016 · 1 min read

मुक्तक

हों ऐसे हम खिले-खिले।
हों न कभी हम हिले-हिले।
नए वर्ष – अभिनन्दन में,
ढहें द्वेष के सभी किले।
@ डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता /साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
382 Views
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