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4 Aug 2017 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक
*****

जहाँ इंसान बिकता है वहाँ किसका ठिकाना है।
फ़रेबी बात उल्फ़त में यहाँ करता ज़माना है।
समझ कर कीमती मुझको लगादीं बोलियाँ मेरी-
सिसकती आबरू कहती यही मेरा फ़साना है।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

Language: Hindi
1 Like · 479 Views
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Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
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