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18 Aug 2017 · 2 min read

प्राकृतिक आपदा

जब मनुष्य खुद को सबसे बड़ा बलशाली, सामर्थ्यवान, बुद्धिमान मानने लगता है तभी ईश्वर के द्वारा रचाये विनाशकारी लिलाओं का हमारे जीवन में प्रादुर्भाव होता है।
आज हम प्रकृति से हर क्षण, हर पल खिलवाड़ कर रहे है वह भी तब जब हमे इसके प्रतिकूल परिणामों का संपूर्ण भान है।
आये दिन हम बृक्षों को काटकर अपने भौतिकतावादी संसाधनों की पूर्ति में लगे हुये है। जहाँ साईकिल या पदयात्रा से भी काम चलजाने वाला हो वहा भी बाईक या फिर मोटरकार को उपयोग में लेकर वायुमंडल को प्रदूषित करने का एक भी मौका छोड़ते नहीं। नदियों के परिचालन को दिन ब दिन अवरुद्ध कर खुद को सामर्थी पुरुष कहलाने का कोई मौका नहीं चुकते।
हम एक भी ऐसा दिन नहीं जब प्रकृति से खिलवाड़ न करते हों लेकिन वही जब कभी प्रकृति हमें अपना विकराल रुप दिखलाती है तो हम इसे प्राकृतिक आपदा बतला कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
आज शहर बड़ा हो या छोटा बहुमंजिला ईमारतों का भरमार है किन्तु हम इतने से हीं कहा रूकने वाले है पृथ्वी पर आये दिन भार बढाते ही जा रहे हैं।
फ्लाईओवर, अंडरपार, मेटरो पीलर और नजाने क्या क्या।
आजहम अपनी तबाही का संपूर्ण सामग्री खुद ही ईकट्ठा करने में जोर सोर से लगे है आये दिन एक से बढ कर एक विभिषिका झेल रहे है फिर भी चेतनाशून्य की भाती इन विपदाओं को निमंत्रित कर अपना पता स्वयं ही बताये जा रहे है।
आ बैल मुझे मार के तर्ज पर हम खुद को ईश्वर से ऊपर सत्तासीन कर चुके हैं।
पता नहीं किस किम्मत पर आज का मानव प्रकृति के नियमों का पालन प्रारम्भ करेगा?
©®पं. संजीव शुक्ल “सचिन”
18/8/२०१७

Language: Hindi
Tag: लेख
235 Views
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