Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jan 2017 · 1 min read

जनक छंद में तेवरी

छंद विधान:
मापनी: हर प्रथम पंक्ति में मात्राएँ 22 22 212 =13
हर दुसरी पंक्ति में 22 22 212, 22 22 212 अर्थात इस तरह 13,13 पर यति
गंदे से इंसान सा
टुकड़े जैसे दान सा,मत सहना अपमान तुम.
थूके जैसे पान सा
अधमर जैसी जान सा, मत सहना अपमान तुम.
बहरे-बहरे कान सा
रोने जैसी तान सा, मत सहना अपमान तुम.
सूखे-सूखे धान सा
अहसानों से मान सा, मत सहना अपमान तुम.
बिन कारण अभिमान सा
अधकचरे से ज्ञान का, मत सहना अपमान तुम.
हरगिज़ झूठी शान सा
हर पल तीर कमान सा, मत सहना अपमान तुम.
झूठे से गुणगान सा
बस नकली तूफ़ान सा, मत सहना अपमान तुम.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
316 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मच्छर दादा
मच्छर दादा
Dr Archana Gupta
■ शुभकामनाएं...
■ शुभकामनाएं...
*Author प्रणय प्रभात*
जनता  जाने  झूठ  है, नेता  की  हर बात ।
जनता जाने झूठ है, नेता की हर बात ।
sushil sarna
गाओ शुभ मंगल गीत
गाओ शुभ मंगल गीत
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
परिवर्तन
परिवर्तन
Paras Nath Jha
कवियों की कैसे हो होली
कवियों की कैसे हो होली
महेश चन्द्र त्रिपाठी
24, *ईक्सवी- सदी*
24, *ईक्सवी- सदी*
Dr Shweta sood
लीकछोड़ ग़ज़ल / मुसाफ़िर बैठा
लीकछोड़ ग़ज़ल / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
ताशीर
ताशीर
Sanjay ' शून्य'
कान्हा मेरे जैसे छोटे से गोपाल
कान्हा मेरे जैसे छोटे से गोपाल
Harminder Kaur
नारी रखे है पालना l
नारी रखे है पालना l
अरविन्द व्यास
गांव का दृश्य
गांव का दृश्य
Mukesh Kumar Sonkar
यादों के छांव
यादों के छांव
Nanki Patre
तू दूरबीन से न कभी ढूँढ ख़ामियाँ
तू दूरबीन से न कभी ढूँढ ख़ामियाँ
Johnny Ahmed 'क़ैस'
विचार, संस्कार और रस [ तीन ]
विचार, संस्कार और रस [ तीन ]
कवि रमेशराज
ख्वाबों से निकल कर कहां जाओगे
ख्वाबों से निकल कर कहां जाओगे
VINOD CHAUHAN
सिर्फ विकट परिस्थितियों का सामना
सिर्फ विकट परिस्थितियों का सामना
Anil Mishra Prahari
2654.पूर्णिका
2654.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
इश्क़ में कोई
इश्क़ में कोई
लक्ष्मी सिंह
*क्रुद्ध हुए अध्यात्म-भूमि के, पर्वत प्रश्न उठाते (हिंदी गजल
*क्रुद्ध हुए अध्यात्म-भूमि के, पर्वत प्रश्न उठाते (हिंदी गजल
Ravi Prakash
उसकी ग़मी में यूँ निहाँ सबका मलाल था,
उसकी ग़मी में यूँ निहाँ सबका मलाल था,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
हक औरों का मारकर, बने हुए जो सेठ।
हक औरों का मारकर, बने हुए जो सेठ।
डॉ.सीमा अग्रवाल
🥀*✍अज्ञानी की*🥀
🥀*✍अज्ञानी की*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
सबक
सबक
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Expectations
Expectations
पूर्वार्थ
बितियाँ बात सुण लेना
बितियाँ बात सुण लेना
Anil chobisa
पावस में करती प्रकृति,
पावस में करती प्रकृति,
Mahendra Narayan
जीवन में प्राकृतिक ही  जिंदगी हैं।
जीवन में प्राकृतिक ही जिंदगी हैं।
Neeraj Agarwal
बादल बनके अब आँसू आँखों से बरसते हैं ।
बादल बनके अब आँसू आँखों से बरसते हैं ।
Neelam Sharma
हिंदी भारत की पहचान
हिंदी भारत की पहचान
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
Loading...