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17 Jul 2017 · 1 min read

छलक पड़ती हो तुम कभी.. .

छलक पड़ती हो तुम कभी , एक कशिश छोड़ जाती हो
भिगाती बारिशें हैं मुझे, तुम तपिश छोड़ जाती हो
अलग बहता हूँ तुमसे मैं, कभी जब बहकने लगता हूँ
मुझसे तब मिलन खातिर, किनारे तोड़ आती हो..

© नीरज चौहान

Language: Hindi
442 Views
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