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25 Jul 2017 · 1 min read

गज़ल

है पुर्वा झूमती मदमाती ज्यूं बर्खा के संग,
हां दो दिलों को आपस में यूं टकराने दो।

उमड़ घुमड़ के ज्यूं हैं छाई नीलगगन पे घटा,
हमें भी ज़ुल्फ तेरी हमपर, यूं बिखराने दो।

हम रोक देंगे तेरी ज़ीस्त के सारे तूफान,
तुफानों से हमें आँखें ज़रा मिलाने दो I

हम बिछायेंगे फूल ऐसे ज्यूं फूलों का चमन,
कि दरिया ग़म का बस यूं पार हो जाने दो।

दीवाना होके बेखुदी में ज्यूं झूमे भंवरा​
हमें भी इश्क में यूं अपने होश गवाने दो I

जो तुम हंसे तो शाखों पर,ज्यूं खिलींकलियां,
मेरे गुलशन में भी तुम यूं बहारें आने दो I

रंगीं रंगीं सी फिजाएं हों ज्यूं मुहब्बत में,
हमें भी इश्क में अपने यूं डूब जाने दो।

न चाहते हमें मय की न के प्याले की,
सुरूर -ए -मोहब्बत-ए- चाहत का छाने दो I

मैं जानती हूं तमन्ना होगी दीदार की तेरी,
रखो सब्र कि रुख से ज़रा नकाब हटाने दो I

क्यों चांदनी ही मधुमास में शर्माए दिलबर,
कि आज चाँद को भी हमें देख के शर्माने दो I

देखके बादल नाचता ज्यूं बौराया मयूर
हां खुलकर हमको भी यूं पंख फैलाने दो।

कूकती कोयल हो मदमस्त ज्यूं उपवन में,
मचलके हमको भी यूं नग़में गुनगुनाने दो।

देख दुनिया खूबसूरत और हसीं नीलम
इन्द्रधनुषी रंग जीवन में अपने सजाने दो I

नीलम शर्मा

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