Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Sep 2017 · 3 min read

क्यों उड़ गई ?

-= क्यों उड़ गई =-

‌ जून का महीना था। घर की छत पर पड़ोस से आ रहे आम के पेड़ पर एक चिड़िया चिरौंटे का जोड़ा तिनके ला-ला कर इकट्ठे कर रहा था । नन्ही बुलबुल अपने छोटे भाइयों के साथ उन्हें रोजाना देखा करती। तीनों भाई उससे छोटे होने के कारण जीजी उनकी हेड हुआ करती थी। वह जो कहती सभी भाई मानते। चिड़िया के उस जोड़े ने अंततःपेड़ पर घोंसला बना ही लिया।
चिड़िया ने अंडे दिए। दोनों उनकी रखवाली रात-दिन करते। बुलबुल अपने छोटे भाइयों के साथ छत की मुंडेर पर चढ़ कर उन्हें देखती और मां की तरह हिदायतें देती – “भैया कोई अंडों को हाथ मत लगाना वरना चिड़िया को इंसान के हाथ की खुशबू आ जाएगी, फिर वह अंडे को पालेगी नहीं फेंक देगी। फिर अंडे में से बच्चा कैसे निकलेगा।” भाई हामी में सिर हिला देते। और फिर वह दिन भी आ गया जब अंडों में से बच्चे निकल आए। अब चारों भाई बहन चिड़िया चिरौंटे का बच्चों को दाना चुगाना बड़े कौतुहल से देखा करते। छोटी चोंच खोल कर बच्चे माँ की चोंच से चुग्गा खा लेते।
‌ एक रोज तेज हवा चलने से चार बच्चों में से एक नीचे जा गिरा। भाई बहन दौड़ पड़े। बुलबुल बोल पड़ी – “अरे भैया अब क्या करें। हम छिप जाते हैं। इसके मम्मी पापा इसे उठा लेंगे।” बाल बुद्धि थी। चिड़िया चिरौंटे का जोड़ा चींचीं करता हुआ यहां वहां फड़फड़ाता रहा किन्तु उस बच्चे को घोंसले में वापस ले जाना असंभव था। बच्चा भी धीमे स्वर में चींचीं कर रहा था। बुलबुल ने मम्मी से पूछा तो उन्होंने रुई में बच्चे को रख दिया। अब भाई बहन रात दिन उसकी सेवा चाकरी करते। उसकी चोंच खुलती तो उसमें रुई से पानी व दूध की बूँदें डाल दिया करते। खैर जनाब, शनैः शनैः बच्चा पनपता गया और कालांतर में बड़ी चिड़िया बन गया। बच्चों ने उसे एक पिंजरे में डाल कर पहचान के लिए ब्लू इंक के छींटे डाल दिए थे । वे पिंजरे को रोजाना छत पर रख आते। बाहरी चिड़ियाऐं आ आकर पिंजरे के आसपास बैठकर चीं चीं करतीं।वह भी उन्हें देखकर अपने पंख फड़फड़ा कर खुश होता। उनमें से एक चिड़िया उस बच्चे की चोंच में रोजाना चुग्गा डालती। यह देख बुलबुल भाइयों से कहती-“भैया शायद यही इसकी मां होगी।”

‌ संयोग से एक दिन बच्चे पिंजरे का दरवाजा ठीक से बंद करना भूल गए। बाहरी चिड़िया आईं और उन्हें आते देख रोज़ की तरह बच्चा अपने पंख फड़फड़ा कर खुश हुआ और थोड़ा आगे बढ़ते ही खुले दरवाजे से बाहर निकल आया। छोटे भाइयों ने दीदी को आवाज दी परन्तु क्या हो सकता था। बच्चा चिड़ियाओं के साथ फुर्र हो गया। भाई बहन बहुत दुखी हुए। उनका बच्चेे से बड़ा लगाव हो गया था। उस दिन किसी ने ठीक से खाना नहीं खाया। बेचारों की इतनी कड़ी मेहनत जो बेकार चली गई। अब वे रोज वह खाली पिंजरा छत पर रखने लगे । चिड़ियाओं के साथ वह बच्चा प्रतिदिन आता था। वह अकेला उन भाई बहनों के नजदीक आता फिर धीरे से उड़ जाता किन्तु पिंजरे के आसपास खूब चक्कर काटता और उस पर चोंच मारता।
‌छोटे भाई अक्सर उस की याद करके यही कहते- “जीजी वह क्यों उड़ गई।” बेचारी बहन निरुत्तर थी।

—-रंजना माथुर दिनांक 25 /07 /2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना )
copyright ©

Language: Hindi
391 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
प्रेम.......................................................
प्रेम.......................................................
Swara Kumari arya
बिखरे ख़्वाबों को समेटने का हुनर रखते है,
बिखरे ख़्वाबों को समेटने का हुनर रखते है,
डी. के. निवातिया
"बड़ी चुनौती ये चिन्ता"
Dr. Kishan tandon kranti
रिश्ता रस्म
रिश्ता रस्म
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
"अपेक्षा का ऊंचा पहाड़
*Author प्रणय प्रभात*
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
*खाऍं मेवा से भरे, प्रतिदिन भर-भर थाल (कुंडलिया)*
*खाऍं मेवा से भरे, प्रतिदिन भर-भर थाल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
.        ‼️🌹जय श्री कृष्ण🌹‼️
. ‼️🌹जय श्री कृष्ण🌹‼️
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
वो पेड़ को पकड़ कर जब डाली को मोड़ेगा
वो पेड़ को पकड़ कर जब डाली को मोड़ेगा
Keshav kishor Kumar
जीभर न मिलीं रोटियाँ, हमको तो दो जून
जीभर न मिलीं रोटियाँ, हमको तो दो जून
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार...
आज के इस हाल के हम ही जिम्मेदार...
डॉ.सीमा अग्रवाल
माँ
माँ
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
भारत का सिपाही
भारत का सिपाही
आनन्द मिश्र
वोट की खातिर पखारें कदम
वोट की खातिर पखारें कदम
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
बचपन
बचपन
नूरफातिमा खातून नूरी
🧟☠️अमावस की रात☠️🧟
🧟☠️अमावस की रात☠️🧟
SPK Sachin Lodhi
खुद का वजूद मिटाना पड़ता है
खुद का वजूद मिटाना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
प्रकृति
प्रकृति
Monika Verma
भर लो नयनों में नीर
भर लो नयनों में नीर
Arti Bhadauria
2996.*पूर्णिका*
2996.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
परिवर्तन विकास बेशुमार
परिवर्तन विकास बेशुमार
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
“गुरुर मत करो”
“गुरुर मत करो”
Virendra kumar
दर्पण जब भी देखती खो जाती हूँ मैं।
दर्पण जब भी देखती खो जाती हूँ मैं।
लक्ष्मी सिंह
गुलों पर छा गई है फिर नई रंगत
गुलों पर छा गई है फिर नई रंगत "कश्यप"।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
#दिनांक:-19/4/2024
#दिनांक:-19/4/2024
Pratibha Pandey
नहीं देखा....🖤
नहीं देखा....🖤
Srishty Bansal
अपने होने की
अपने होने की
Dr fauzia Naseem shad
मैं तुम्हारे बारे में नहीं सोचूँ,
मैं तुम्हारे बारे में नहीं सोचूँ,
Sukoon
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
Loading...