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20 Feb 2017 · 1 min read

किसानो की आवाज़

न चाहते हूए भी ऐसी बात लिख रहा हु,
दर्द मे डूबकर जज़्बात लिख रहा हूँ!
हमने देखा है देश मे जो किसानो का हाल,
बनकर हमदर्द मैं उनकी आवाज़ लिख रहा हूँ!!
इस देश को हरे से हरा बनाया है हमने,
मानसून से लड़कर अनाज उपजाया है हमने!
न छोड़ी कोई कसर अपनी मेहनतो मे ज़ैद,
इस देश को बुलन्दियों तक पहुचाया है हमने!!
न गर्मी,न सर्दी की परवाह किए निकले थे,
जय जवान-जय किसान की आवाज़ लिए निकले थे!
क्या पता था ऐसे बिखर जाएँगे हम,
हम तो देश के साथ सवरने का अरमान लिए निकले थे!!
मेरी आवाज़ को न ऊपर उठाया गया,
मेरे ज़ख्मो पर न मरहम लगाया गया!
आती है अखबारो मे ख़बरे मेरी मौत की,
मेरे दर्द को न उन तक पहुचाया गया!!
मेरी आवाज़ को ऊपर उठाया तो जाए,
राजनीति के गलियारों मे पहुँचाया तो जाए!
हमने भी तो बढ़ाया है शान इस देश का,
अच्छे दिनों के चक्कर मे हमे भुलाया न जाए!!
नन्हे हाथो से बड़ी बात लिख रहा हूँ,
मायूस कलम से उनकी औकात लिख रहा हूँ!
चुनाव जीत कर बन जाते है वो रईसो के गुलाम,
मैं तो बस ग़मगीन किसानो की आवाज़ लिख रहा हूँ!!
जिसे सवरना-सवारना था देश वो बिखर रहे है,
हमारे देश मे किसान मर रहे है!
क्यों न लिखे हमारी कलम भी उनका दर्द,
जो बचे है वो भी जीते-जी मर रहे है!!

(((((ज़ैद बलियावी)))))

Language: Hindi
1 Like · 874 Views
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