कविता : हर समस्या का समाधान होता है……???
हे मानव क्यों छोटी-छोटी बातों पर तू परेशान होता है।
इस धरती पर तो पगले हर समस्या का समाधान होता है।
विधाता ने जीवन के दो पहलू बनाए हैं कभी न भूलना तू।
कभी यहाँ रात होती है तो कभी सूर्य उदयमान होता है।
अपने सुख-दु:ख कारण त्वरित करने वाला भी तू ही है।
इस जीवन का आगाज़-तारण करने वाला भी तू ही है।
जैसा बोये वैसा काटे का फ़लसफ़ा तू क्यों भूल जाता है।
कभी साधे स्वार्थ की चुप्पी करे कभी उच्चारण भी तू ही है।
सलाह लेता है किससे ये तुझी पर तो निर्भर करता है पगले।
ये तू भी जानता है यहाँ पर कौन खोटा है कौन खरा पगले।
दुर्योधन को शकुनि भाया अर्जुन ने श्रीकृष्ण को था अपनाया।
ये निज-निर्णय था भ्रमित करने को विधाता नहीं उतरा पगले।
खुद की शोहरत पर नाज करे दूसरे की पर तू करता है जलन।
खुद की बहन लगे प्यारी तुझे दूसरे की पर बुरे रखता है नयन।
निर्भया का दोषी हो लिखवाना चाहे अपना तू अच्छा चाल-चलन।
ये विरोधाभास कैसे करे जीवन में तुझे बता ज़रा आनंद मग्न।
जीने का ढ़ंग बदल,बुराई का तू संग बदल, चैन बहुत पाएगा।
वरना विधि का विधान है ये जैसा करेगा वैसा तेरे आगे आएगा।
फूलों में रहेगा तो सुगंध जीवन में घुल जाएगी सुनले बात मेरी तू।
काँटों के संग रहकर तो तू ख़ुद को देखना लहूलुहान हो जाएगा।
बुरा मत देख,बुरा मत सुन,बुरा मत कह बापू के मंत्र सीख।
शिक्षित बन,संघर्ष कर,संगठित रह अंबेडकर के तू यंत्र सीख।
आत्मनिर्भर हो,सभ्य हरपल हो,हँसी गुलाब की तेरे लबपर हो।
स्वर्ग यहीं,नरक यहीं नेक कर्मों से बुराई फिर छूमंतर सीख।
कुछ ऐसा कर दूसरों के लिए प्रेरणा का अवतार बन जाए तू।
कुछ ऐसा लिख नस्लों के लिए सागर का विस्तार बन जाए तू।
“प्रीतम”खुशी का सौदागर बन दुख का बन तू भागीदार यार मेरे।
लोगों के दिलों में चाहत का एक कोमल-सा उद्गार बन जाए तू।
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राधेयश्याम….बंगालिया….प्रीतम….कृत