Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Feb 2017 · 9 min read

कलंकी

सुबह का समय था| सूरज निकला, उसकी स्वर्ण पीताभ किरणें मेरे मुंह पर आ रहीं थी| में बड़े आनंद से उनका अनुभव करते हुए नींद की गोद में सिमटने की कोशिश कर रहा था कि तभी मेरी पूज्य माताजी ने मुझे जगाया, बोलीं, “कब तक सोता रहेगा, चल उठ मुंह धो ले और गाँव के बाहर कलंकी बैठा है उसे आटा दे आ|”
ये कलंकी वह होता है जिसके हाथ से जाने अनजाने गाय की हत्या हो जाती है, फिर वह उसकी पूंछ के कुछ बाल लेकर एक चादर के कोने में बांधता है और उसी चादर की झोली बनाकर उसमे भीख मांगता है| ये भीख कम से कम बारह गाँव में मांगी जाती है| भीख मांगने वाला कलंकी कोई भी हो, अमीर या गरीब, उसे भीख मांगनी ही पडती है, तभी गाय की हत्या सर से उतरती है|
में कटोरी में आटा लेकर गया, देखा कलंकी काला कपड़ा सर पर ढके चादर फैलाए बैठा है| मैंने आटे वाली कटोरी उसकी तरफ बढाई तो वह बोला, “भइय्या चादर पर डाल दो|” जब उसने मुझसे यह कहा तो मुझे लगा कि मैंने यह आवाज कहीं सुनी है| मैंने तुरंत याद किया तो ध्यान आया कि यह आवाज तो पडोस के गाँव में रहने वाले चंदर काका की है, जिनके गाँव में, में पढने जाता हूँ और चंदर काका की दुकान है जिस पर मेरा ‘उधार खाता’ चलता है|
फिर मैंने उनके हुलिए पर नजर दौडाई, वही हाथ जिनसे रोज़ रोज़ गजक, रेवड़ी और खट्टा चूरन लेकर खाता था| जिनसे वो कलम उठाकर मेरे उधार खाते में रुपये लिखा करते थे| वही उकडू बैठने का तरीका जैसे वो अपनी परचून की दुकान पर बैठा करते थे, खांसने का अंदाज़ भी वही था जिसे में चार साल से रोजाना स्कूल से आते जाते सुना करता था|
मुझे पक्का यकीन हो गया कि यह वही दुकानदार अपने चंदर काका हैं, मुझसे रहा न गया और में बोल पडा, “चंदर काका तुम|” लेकिन चंदर काका ने कोई जबाब नही दिया| मैंने दोबारा पुकारा, “चंदर काका में बंटू, तुम्हारी दुकान पर उधार खाते वाला|”
इस बार चंदर काका से भी न रहा गया, धीरे से काला कपड़ा हटाया, मुझे उनका मुंह दिखाई दिया, आँखे झरने की तरह वह रहीं थीं, शायद मुझे देखकर कुछ शर्मिंदा भी थे, लेकिन मेरी प्यार भरी पुकार सुनकर उनका मन भर आया, मेरा दिल भी धकधका उठा|
जिनके हाथों चार साल से गजक, रेवड़ी और खट्टा चूरन खाता रहा, वो भी उधार खाते से, आज उसे मुझसे एक कटोरी आटा मांगना पड़ रहा है| मुझसे न रहा गया, में चंदर काका के पास बैठ गया, चंदर काका मेरा हाथ पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़े|
मेरा चंदर काका से एक दोस्त जैसा नाता था| रोज़ दुकान पर जाता मन में आता वो खाता, पैसे न होते तब भी चंदर काका कभी मना न करते थे| उन्होंने मेरा उधार खाता बना दिया था, जिससे कि दुकान पर उनका लड़का या घर वाली बैठी हो तो मुझे सामान देने से मना न कर सकें| चंदर काका की उम्र कोई पचास साल के आस पास थी और मेरी सोलह के आस पास लेकिन दोस्ती थी बराबर के उम्र जैसी| शायद आज इसी लिए वो मेरा हाथ पकड़कर रो पड़े| फिर मैंने पूछा, “काका ये सब क्यों कर रहे हैं आप|”
चंदर काका गले में पड़े गमछे से आंसू पोछते हुए बोले, “क्या बताऊँ बेटा सुबह गाय खोलकर घर के पिछवाड़े बाधने जा रहा था तो वह भाग छूटी और जाकर रामू के खेत में घुस गयी, तुम्हे तो पता है कि रामू कितना लड़ाकू है, में तुरंत गाय के पीछे भागा तो गाय अंदर खेत में चली गयी, मैंने पतली सी लकड़ी उठाई और उसे डराकर खेत से बाहर निकालने लगा, गाय डरकर खेत से बाहर भागी तो उसका एक पैर गुलकांकरी की बेल से लभेडा खा गया और वह सर के बल पत्थर से जा टकराई और वहीं ढेर हो गयी, जब गाँव के लोगो को पता चला तो इकट्ठे हो गये और तरह तरह की बातें करने लगे, फिर पंडित जी ने उपाय बताया कि बारह गाँव भीख मांगो, इक्कीस ब्राह्मणों का भोज कराओ फिर हम शुद्ध करा देंगे, तब तक कोई आदमी तुम्हारा मुंह न देखेगा, अगर देखेगा तो अशुभ माना जायेगा और तब तक तुम काला कपड़ा डालकर अपना मुंह छिपा लिया करो|”
यह कहते कहते चंदर काका का गला भर्रा गया| में भी सोचने लगा कि जिस आदमी का कोई दोष ही नही उसे किस बात की सजा| इतने में चंदर काका उठ खड़े हुए और बोले, “अच्छा दोस्त चलता हूं, अभी कई गाँव में जाना है|” यह कहते हुए चंदर चल पड़े|
में काका को तब तक देखता रहा जब तक कि वो मेरी आँखों से ओझल न हो गये, उसके बाद में घर चला गया| सारा दिन में अपने उस ‘दोस्त’ के बारे में सोचता रहा जो निरापराधी होते हुए भी अपराधी जैसी सजा भोग रहा था|
दूसरे दिन में स्कूल जा रहा था, सहसा चंदर काका की दुकान पर कदम ठिठके जो रोज़ का दस्तूर था, चाहे में स्कूल जाने के लिए लेट होता तब भी चंदर काका की दुकान पर जरूर रुकता था, उन्हें दुआ सलाम करता, तब चंदर काका कहते, “बंटू लौटकर आना अभी लेट हो गये हो, जल्दी स्कूल पहुँचो|”
इतना सुनते ही में चूरन की पैकिट उठाता और यह कहते हुए स्कूल की तरफ भागता, “चंदर काका ये मेरे खाते में लिख देना|” काका बोलते, “हाँ हाँ लिख दूंगा|” लेकिन आज दुकान पर चंदर काका न थे, उनका लड़का दुकान पर बैठा था| मुझे देखकर बोला, “आओ भैय्या कुछ लेना है|” में बोला, “नही आज कुछ नही लेना में तो चंदर काका को देखने आया था, कहाँ हैं काका|”
लड़का बोला, “अंदर है, अभी शुद्धि तक चेहरा नही दिखा सकते न|” मुझे यह सोचकर गुस्सा आया सोचा कितने निर्दयी लोग हैं, इतने अच्छे चंदर काका को कितनी बुरी सजा दी है| में इतना सोचकर चलने को हुआ तो लड़का बोला, “भैय्या क्या आप भी शुद्धि होने तक हमारी दुकान से कुछ न लेंगे|”
मैंने आश्चर्य से पूछा, “क्यों? किसने कहा|” लड़का बोला, “सब कहते हैं, इसीलिए तो किसी ने दो दिन से हमारी दुकान से कोई सामान नही लिया|” मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और शर्म भी महसूस हुई, मेने सोचा आज दुकान से मेरे द्वारा कुछ न लेने पर ये लड़का यही सोच रहा होगा| में फट से दुकान पर चढ़ा और उस लडके से बोला, “मुझे दो रूपये की गजक और एक रूपये की चूरन की पैकिट दे दो|”
लडके ने तुरंत सामान दिया| उसका हाथ ऐसे चलता था मानो साक्षात् भगवान् उसकी दुकान पर सामन लेने आ पहुंचे हों, चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी| पलक झपकते ही सामान मेरे हाथ में था| सामान लेने के बाद मैंने उस लडके से कहा, “देखो मेरे वारे में कभी ऐसा मत सोचना, में ओरों की तरह नही हूं और चंदर काका से मेरी ‘रामराम’ बोल देना|”
लड़का अपने कहे पर थोडा शर्मिंदा था| मैंने चलने से पहले उसी के सामने थोड़ी गजक खायी और उसे भी खिलाई| यह सब मैंने इस लिए किया कहीं वो ये न सोचे कि सिर्फ सामान लेंगे पर उसे खायेंगे नही| मुझे देखा देखी अन्य लडके भी सामान लेने लगे, दो दिन से विना ग्राहक वाली दुकान पर ग्राहक आने से लड़का ख़ुशी ख़ुशी सामान देने लगा|
स्कूल में आज मेरा मन न लगा, छुट्टी होते ही चंदर काका की दुकान पर भाग छूटा| दुकान पर पहुंचा तो पता चला दुकान बंद है, क्योकि आज शुद्धि कार्यक्रम हो रहा था| मुझे चंदर काका से संवेदना थी और ख़ुशी भी कि आज चंदर काका पाप मुक्त हो जायेंगे तो में रोज उनसे दुकान पर मिला करूंगा|
काका के घर से पंडितों का निकलना शुरू हुआ, पेट पर हाथ फेरते हुए मोटे मोटे पंडित और पुरोहितों से मुझे चिढ आ रही थी, लेकिन में कुछ नही कर सकता, यह सोच घर की ओर चल पडा|
अगली सुबह फिर में घर से स्कूल के लिए चला| चंदर काका की दुकान पर पहुंचा तो देखा कि चंदर काका दुकान पर बेठे हैं, दाढ़ी बढ़ी हुई, बिखरे बाल, गुजला हुआ कुरता| ऐसा लग रहा था मानो महीनों से बीमार हों|
मुझे उन्होंने देखा, मैंने उन्हें देखा, दोनों ने एक दूसरे को देखा, दुकान से उठकर चंदर काका ने मुझे गले से लगा लिया, दोनों ऐसे गले मिले कि बर्षो बाद मिले हों| फिर चंदर काका से खूब बातें हुई| उसके बाद खट्टा चूरन और रेवड़ी लेने के बाद में स्कूल चला गया| आज में खुश था, म्रेरे दोस्त चंदर काका जो मिल गये थे|
स्कूल से छुट्टी होते ही में चंदर काका की दुकान पर पहुंचा, वहां काफी भीड़ लगी हुई थी, चंदर काका के घर से रोने की आवाजें आ रही थी| मेरे कदम बरबस चंदर काका के घर की तरफ बढे, किसी से पूछने की हिम्मत न होती थी|
अंदर जाकर देखा तो मानो आँखों पर यकीन ही न हुआ, लगता था सपना देख रहा हूं, दिल बैठा जाता था, सारा शरीर सुन्न पड़ गया, लगा कि चक्कर खा कर गिर पडूंगा| सामने जमीन पर चंदर काका की लाश पड़ी थी, चेहरा देख कर लगता था मानो अभी बोल पड़ेंगे, “आओ बंटू दोस्त, क्या लोगे|”
मुझे लगा मेरी टाँगे मेरा बजन न सह सकेंगी, आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा, अब मुझसे मेरे दोस्त की ये चुप्पी और न देखी जाती थी| में झट से दौड़कर बाहर आ गया और बाहर बने चबूतरे पर बैठ गया| मुझे चक्कर आ रहे थे, लोग बाहर खड़े तरह तरह की बातें कर रहे थे, कोई कहता था कि कलंकी आदमी मुश्किल ही बचता है, कोई कहता गाय का हाथ से मरना भला कोई मजाक बात है और किसी का कहना था कि शुद्धि कर्म में कोई कमी रह गयी होगी| सबका अपना अपना मत था|
तभी एक बुड्ढा आया और मेरी बगल में बैठ गया, उस बुड्ढे को में अक्सर चंदर काका की दुकान पर बैठा देखता था, मुझे रोता देख बोला, “लोगों ने मार डाला उसे, पंडितों का भोज कराने के लिए पैसा लिया था, जब पूरा हिसाब जोड़ा गया तो रुपया चंदर की औकात से ज्यादा बैठा, गाय की गाय मर गयी और ऊपर से कर्जा हो गया, लड़की शादी को है, हिसाब जोड़कर घर लौटा तो आकर चारपाई पर लेट गया और फिर न उठा|”
इतना कहते कहते बुड्ढे की छोटी और बूढी आँखे छलछला गयीं, मेरे दिल में भी टीस पैदा हो गयी, मुझसे और न रुका गया| घर आकर चारपाई पर लेट गया, निढाल सा चारपाई पर लेटा तो नींद आ गयी| कई दिन स्कूल न गया, जबरदस्ती घर वालों ने स्कूल भेजा लेकिन पैर न पड़ते थे| पता था कि चंदर काका की दुकान रास्ते में पड़ेगी, जी कड़ा कर चल पडा|
चंदर काका की दुकान देखते ही मन कुंद हो गया, आँखे भर आयीं, दुकान खुली हुई थी, उनका लड़का बैठा हुआ था उसका सर मुंडा हुआ था, मुझे देखते ही रो पडा| में भी रोने को था लेकिन रोया नहीं क्योकि मुझे रोता देख वह और ज्यादा रोता, मैंने उसे चुप कराया| लड़का बोला, “भैय्या आ जाया करिए दुकान पर, आपको देख कर पापा की याद आ जाती है|”
मैंने हाँ में सर हिला दिया| फिर वह बोला, “कर्जा है सर पर इसलिए रोजाना दुकान खोलनी पडती है|” में समझ चुका था| मैंने उससे अपना हिसाब जोड़ने के लिए कहा तो वह बोला, “आ जायेगे पैसे भैय्या, कहीं बाहर के थोड़े ही है आप|” मेरे बार बार कहने पर उसने हिसाब जोड़ा, पेंतालिस रू बैठे, लेकिन अंतिम दिन के पैसे न लिखे थे, मेरे हिसाब से पचास रू होते थे|
जब मैंने ये बात उस लडके से कहीं तो बोला, “लास्ट वाले दिन के पैसे पापा ने हिसाब में लिखने से मना कर दिया था, कहा बंटू से आज के पैसे न लेना, क्योकि उस दिन आप को देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगा था| मेरी आँखे यह सुनकर भीग गयीं| में उसे रू देकर स्कूल चला गया|
बाद में जब भी में उस दुकान के सामने से गुजरता तो लगता कि चंदर काका निकल कर कहेंगे, “क्यों भाई बंटू क्या लोगे आज|” लेकिन यह सब झूठ था, जमाने की नजरों में कलंकी चंदर काका इस पवित्र लोगों दुनिया को छोड़कर चले गये थे|
लेकिन मुझे आज भी उनका इन्तजार था, उनके चितपरिचित हाथों से गज़क, रेवड़ी और खट्टा चूरन खाने का, स्कूल के लिए जल्दी जाओ कहने का| मुझे इन्तजार था चंदर काका के मुझे दोस्त कहकर पुकारने का|

Language: Hindi
367 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कड़वी  बोली बोल के
कड़वी बोली बोल के
Paras Nath Jha
*तुम्हारी पारखी नजरें (5 शेर )*
*तुम्हारी पारखी नजरें (5 शेर )*
Ravi Prakash
Being with and believe with, are two pillars of relationships
Being with and believe with, are two pillars of relationships
Sanjay ' शून्य'
हाइकु
हाइकु
अशोक कुमार ढोरिया
विषम परिस्थितियों से डरना नहीं,
विषम परिस्थितियों से डरना नहीं,
Trishika S Dhara
सुन मेरे बच्चे
सुन मेरे बच्चे
Sangeeta Beniwal
*माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप - शैलपुत्री*
*माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप - शैलपुत्री*
Shashi kala vyas
लम्हों की तितलियाँ
लम्हों की तितलियाँ
Karishma Shah
" नैना हुए रतनार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
ना नींद है,ना चैन है,
ना नींद है,ना चैन है,
लक्ष्मी सिंह
बहुत कीमती है दिल का सुकून
बहुत कीमती है दिल का सुकून
shabina. Naaz
यादों का सफ़र...
यादों का सफ़र...
Santosh Soni
[28/03, 17:02] Dr.Rambali Mishra: *पाप का घड़ा फूटता है (दोह
[28/03, 17:02] Dr.Rambali Mishra: *पाप का घड़ा फूटता है (दोह
Rambali Mishra
लोकतन्त्र के हत्यारे अब वोट मांगने आएंगे
लोकतन्त्र के हत्यारे अब वोट मांगने आएंगे
Er.Navaneet R Shandily
जाने के बाद .....लघु रचना
जाने के बाद .....लघु रचना
sushil sarna
मोहब्बत
मोहब्बत
Dinesh Kumar Gangwar
अब बस बहुत हुआ हमारा इम्तिहान
अब बस बहुत हुआ हमारा इम्तिहान
ruby kumari
क्यों गए थे ऐसे आतिशखाने में ,
क्यों गए थे ऐसे आतिशखाने में ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
नारी का बदला स्वरूप
नारी का बदला स्वरूप
विजय कुमार अग्रवाल
रिश्ते वक्त से पनपते है और संवाद से पकते है पर आज कल ना रिश्
रिश्ते वक्त से पनपते है और संवाद से पकते है पर आज कल ना रिश्
पूर्वार्थ
2959.*पूर्णिका*
2959.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
काजल
काजल
SHAMA PARVEEN
ये आंखें जब भी रोएंगी तुम्हारी याद आएगी।
ये आंखें जब भी रोएंगी तुम्हारी याद आएगी।
Phool gufran
6-जो सच का पैरोकार नहीं
6-जो सच का पैरोकार नहीं
Ajay Kumar Vimal
"शहनाई की गूंज"
Dr. Kishan tandon kranti
ज़िन्दगी और प्रेम की,
ज़िन्दगी और प्रेम की,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"ॐ नमः शिवाय"
Radhakishan R. Mundhra
"
*Author प्रणय प्रभात*
आओ ...
आओ ...
Dr Manju Saini
तुमको ख़त में क्या लिखूं..?
तुमको ख़त में क्या लिखूं..?
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
Loading...