Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Sep 2016 · 6 min read

एक अनोखा दान (नाटक)

पात्र-
1- श्रीकृष्ण- पाण्डवों के पक्ष में पार्थ अर्जुन के सारथी।
2- अर्जुन- पाण्डवों का महानायक और श्रेष्ठ धनुर्धर।
3- कर्ण- कौरव पक्ष का महानायक और महासमर के सत्रहवें दिन का सेनापति।
4- कर्णपु्त्र शोण, याचक, कई सेनानायक, सेन्य टुकड़ी और सेन्यवीरों के झुण्ड।

(स्थान- कुरूक्षेत्र की रक्तरंजित रणभूमि में चारों और हताहत रणवीरों के क्षत-विक्षत शरीर
और उनसे उठते भयावह क्रंदन के बीच चलता कर्ण और अर्जुन का भीषण युद्ध एक दम रुक गया। कर्ण के जैत्ररथ का दक्षिण चक्र रणभूमि में आधा धँस गया था और वायु की गति से कर्ण उतर कर उसे पकड़ कर पूरी शक्ति से निकालने का प्रयास कर रहे थे। अर्जुन का संधान किया हुआ धनुष पल भर के लिए रुक गया। कर्ण निहत्थे थे। तभी कानों को सुन्न कर देने वाला शंख से भी भयानक कृष्ण का स्वर सुन अर्जुन हड़बड़ा गया।)

श्रीकृष्ण-‘पा—-र्थ—–ती—र छो—-ड़ो।’

अर्जुन-‘कर्ण निहत्थे हैंं, देवकीनंदन।’

कर्ण-(कर्ण ने अर्जुन की ओर देखते हुए) –‘मैं निहत्था हूँ पार्थसारथी, यह धर्मयुद्ध के विरुद्ध आचरण है।’
श्रीकृष्ण-‘अर्जुन, इसकी बात मत सुनो—कर्ण निहत्थे नहीं हैं—उनका हाथ चक्र पर है, चक्र भी अस्त्र है, तीर चलाओ—-अवसर मत चूको—-।’

(कृष्ण के क्रोध और आवेश भरे आदेश से अर्जुन के हाथ काँपे और धनुष से तीर छूट कर सीधा कर्ण के वक्ष में धँस गया। कर्ण गज की भाँति चिंघाड़ा, तीर के वेगपूर्ण आघात को सहन नहीं कर सका और पीछे की ओर गिरा। उसके साथ ही पूरी ताकत से पकड़े हुए चक्र का आधा भाग भी टूट कर पूरे वेग से कर्ण की ग्रीवा और मस्तक से टकराता हुआ वक्षत्राण से टकराया, जिससेे तीर कर्ण के वक्ष में और भीतर तक धँस गया। रक्त तीव्रगति से बहने लगा गया था। कर्ण आहत हो कर रणांगण में गिर कर मूर्छित हो गये। उनकी साँस तीव्रगति से चलने लग गयी थी। उन्होंने उठने का प्रयास भी किया, किंतु नहीं उठ पाये। कर्ण का पतन हो चुका था। कुछ ही क्षणों में अर्जुन और श्रीकृष्ण रथ से उतर कर नीचे भूमि पर आए और कर्ण की ओर बढ़े। कर्ण और अर्जुन के रथ के चारों ओर दूर खड़े हुए सेन्‍यवीरों के झुण्ड और सेनानायकों में शोर उमड़ा।)

सेन्‍यवीर- ‘महानायक कर्ण का पतन हो गया—–कर्ण धराशायी हो गये——-।’
श्रीकृष्ण- (शंखनाद करते हैं) महावीर कर्ण का पतन हो गया——-आज का युद्ध रोक दिया जाये।’

(युद्ध रूक गया सुन कर कर्ण का शरीर हिला-डुला, किन्तु वे उठ नहीं पाये। उन्होंने सिर उठा कर एक बार अर्जुन को और पश्चात् श्रीकृष्ण को देखा और हाथ उठाने का विफल प्रयास करने लगे। श्रीकृष्ण आगे बढ़े व उन्होंने अर्द्धचक्र को उठा कर एक ओर पटक दिया। कर्ण ने साश्रु श्रीकृष्ण को बिना बोले हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। कृष्ण ने अर्जुन के स्कंध पर हाथ रख कर इंगित किया। अर्जुन वहाँ से सिर नीचा किए युद्ध भूमि से दूर जाने लगे।)

कर्ण- मुझे क्षमा करें प्रभु—-अब कोई पश्चाताप नहीं——माते की इच्छा पूर्ण हो गयी—- उन्हें उनके पाँचों पाण्डव मिल जायेंगे—–ब—स, अंतिम समय मैं उनके दर्शन नहीं कर पाऊँगा——यह कष्ट ले कर जाना होगा मुझे—–।’

श्रीकृष्ण- वैजयंती के बिना, कवच कुण्डल के बिना भी तुमने वह भीषण युद्ध किया राधेय, कि मैं भी कुछ समय के लिए विचलित हो गया था। तुम सचमुच महान् हो कर्ण, श्रेष्ठ मित्र, युद्ध की हर कला में निष्णात, सर्वश्रेष्ठ पाण्डव, मृत्युञ्जय—अजेय वीर और दानवीर—-भूतो न भविष्यति—आर्यावर्त में कदाचित् ही तुम्हारे जैसा कोई जन्म ले —धन्य है बुआ कुंती, जिसने तुम्हारे जैसे पु्त्र को जन्म दिया——–कर्ण तुम महान् हो—- कौरव पक्ष के होते हुए भी तुम्हारे शौर्य और श्रेष्ठता के बखान किये बिना इतिहास नहीं लिखा जाएगा—-तुम शान्त हो जाओ, अस्ताचल को जाते हुए तुम्हारे जनक रोहिताश्व को स्मरण करो और अपने अतीत को भूल कर ऊर्ध्वश्वास लो—-तुम्हें अंतिम प्रयाण करना है——-मैं यहाँ सेन्य टुकड़ी को सुरक्षा चक्र बनाने के लिए कह कर, उन्हें निर्देश दे कर आवश्यक कार्य सम्पन्न कर लौटता हूँ–।’ (कृष्ण कर्ण से दूर तेज पग से बढ़ने लगे कि कर्ण के अंतिम स्वर उन्होंने सुन लिये थे—-इसलिए मुड़ कर उन्होंने कर्ण को देखा।)

कर्ण- मेरी श्वास क्षीण होने लगी है देवकीनंदन, मेरा अंतिम संस्कार कन्या भूमि पर—- आपको ही करना है द्वारिकाधीश——-।’
(कृष्ण कुछ बोले नहीं, वे वेग से सेनानायकों की ओर बढ़ गये और उन्हें निर्देश देने लगे। सूर्य अस्ताचल के समीप ही था। सेनानायकों ने सुरक्षा घेरा बनाने के लिए तीव्र प्रयास आरंभ कर दिये थे। युद्ध समाप्त हो चुका था। रणांगण में हताहतों का क्रंदन हृदय दहला रहा था। तभी दूर से एक स्वर कर्ण को सुनाई दिया।)

याचक-‘मेरे पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए, है कोई दानवीर——जो मेरी सहायता कर सके-।’ (कर्ण ने अपने हाथ को ऊँचा किया और पूरी शक्ति से अपने समीप खड़े सैनिक को अपने समीप बुलाया।)
कर्ण-‘सैनिक——उ–स व्य–क्ति–को बु–ला–ओ, जो कु–छ या—च–ना क-र–रहा है। (तभी

कर्ण का पुत्र शोण अश्वारूढ़ वहाँ प्रवेश करता है। याचक का स्वर समीप आता जा रहा था—।)

याचक-‘मैं, मेरे मृतक पुत्र को ढूँढ्रने आया था–वह रणांगण में वीरगति को प्राप्त हो गया है—-उसका अंतिम संस्कार करना है—–मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ—अंतिम संस्कार किए बिना उसे मुक्ति कैसे मिलेगी—?’

(सैनिक उस ब्राह्मण याचक को कर्ण के समीप लाता है। कर्ण को देख कर वह याचक किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है।)
याचक-(फूट-फूट कर रोते हुए)-‘ओह—दानवीर तुम्हारी यह दशा—-चक्रवर्ती—-मृत्युंजय……. महानायक—–तुम्हें भी लील गया यह समर—-अनेकों को भूमिदान—रत्न—-अतुल धन सम्पदा—दान देने वाले महावीर, आज तुम भी मेरे समान असहाय हो–गये-।’
(याचक ने नीचे झुक कर सम्मान से प्रणाम किया) ‘मेरे पु्त्र ने तुम्हारी ओर से लड़ते हुए अपने प्राण त्यागे हैं—उसने पीठ नहीं दिखाई अंगराज–वह आपकी सहायता के लिए समीप नहीं आ सका-होगा—उसकी इस धृष्टता के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।’

कर्ण-‘न—हीं—पू—ज्य–वर—-आपके–पु–त्र ने तो सैं—क–ड़ों को मा–र कर रण—भू–मि में प्रा–ण त्या—गे हैं। मैं ही अ-स-हा-य हो गया, जो उ–से ब–चा न–हीं स–का—।’

याचक-(अपने उत्तरीय के अंदर से यज्ञोपवीत बताते हुए)- ब्राह्मण हूँ, विधि विधान से उत्तर कर्म कर अपने अंतिम उत्तरदायित्व से मुक्त होने की चाह है। श्वान, शृगाल उसे नोचें-खसोटें यह कदाचित् मैं देख न पाऊँ। अंतिम संस्कार नहीं कर सका तो कोई बात नहीं—समरांगण की मृत्यु तो वीरों का शृंगार है—और फि‍र मेरे पास तो उसके अंतिम संस्कांर के लिए मुद्रा या पूँजी भी नहीं है, मैं लौट जाऊँगा—तुम जैसे महादानी की भी आज यह दशा—ईश्वर की माया को मैं क्या समझूँ—दान पाने का साहस नहीं कर पा रहा हूँ—-ईश्वर आपको शांति प्रदान करे—–(चलने का उपक्रम करता है।)—चलता हूँ।’
कर्ण-(अस्फुट स्वर में)- ‘रुको ब्राह्मण—–मेरे यहाँ से कोई रिक्त चला जाए—नहीं–विप्रवर मेरा जीवन धूल है—रुकें—।’
याचक-(वृद्ध रुका और मुड़ कर कर्ण को देखते हुए)- ‘रक्तरंजित—–असहाय—राजकोष—राज प्रासाद से दूर—तुम्हारे शरीर में क्षत वक्षत्राण – रिक्त तूणीर–टूटे शरों व लुंज शरीर से अशक्‍त विवश, नहीं राजन—क्ले्श त्यागें—न देने के अपराध बोध से ग्रसित हो जाओगे-सूर्य अस्ताचल को गमन कर रहा है—मुझे शीघ्र ही पुत्र का संस्कार करना है—मुझे आज्ञा दो कर्ण—तुम भी शांति से प्रयाण करो—।’
कर्ण-(गंभीर किंतु दृढ़ और तीव्र स्वर में)- ‘रु–को दि्वज, माँ-गो ब्रह्म-पुत्र, आज क-र्ण की परीक्षा है, टूटती हु–ई साँसें हैं—अंतिम स—म–य में कुछ प्रति-दान शे–ष है—तभी तो आपके यहाँ आने की नियति ब–नी है—शी–घ्र माँ–गो विप्र-वर—रिक्त—हस्त नहीं जाने दूँ–गा तुम्हें—।’
याचक-‘तुम्हारा असीम आत्म्बल देख कर मैं चकित हूँ महावीर——इतना दान चाहिए अंगराज कि अपने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए सामग्री जुटा सकूँ।’
(कर्ण ने पुत्र शोण के समक्ष अपना मुख खोल कर अपनी स्वर्ण दंतपंक्ति की ओर इंगित कर ध्यान दिलाया। शोण मानो मूर्ति बन गया। कर्ण ने पूरे अधिकार के साथ बलपूर्वक उसका कंधा झंझोड़ दिया। शोण भयभीत हो गया।)
कर्ण-‘शोण-पाषाण उठाओ और मेरी दंतपंक्ति तोड़ कर मुझे हस्तगत करो-यह मेरा आदेश है—।’
(पिता के इस हठाग्रह को शोण टाल नहीं सका—-पूरी शक्ति समेट कर पाषाण उठा कर उसने और कष्‍ट न हो, न चाहते हुए भी एक ही चोट में दंतपंक्ति टूट जाये, आघात किया—। रक्तरंजित हाथों से कर्ण ने स्वंर्ण दंतपंक्ति अपने हाथ में ले कर अपने अश्रुओं से धोया।)

कर्ण-(ब्राह्मण से लेने का आग्रह करते हुए)- ‘लो ब्राह्मण—अस्वच्छ‍ हैं—इन्हें- धो कर बेच कर वांछित सामग्री एकत्र करें और पु्त्र का स..सम्मान उ..त्त—र कर्म करने को प्रशस्त हों।’
याचक-‘ओह, महानायक—तुम धन्य हो—तुम्हा्री इस असीम शक्ति और धैर्य से कोई तुम्हें सूतपुत्र कहने का साहस नहीं करेगा। आप में अवश्य क्षत्रिय गुण हैं—तुम्हारे इस कृत्य‍ और इस महादान के लिए मैं तुम्हें संसार में प्रख्यात करूँगा। इस अनोखे दान को आर्यावर्त कभी नहीं भुला पाएगा। धन्य है मेरा पुत्र, जिसने तुम्हारे शौर्य को देख कर अवश्य सैंकड़ों शत्रुओं को मार गिराया होगा—-तुम धन्य हो—महावीर–तुम धन्य हो—चलता हूँ–सूर्य अस्त हो रहा है–तुम भी स्वर्गारोहण करो—अंगराज—।’

याचक-(जाते जाते)- अब पृथ्वी वीरों से खाली हो जाएगी—क्यों- किया नियति ने ऐसा—कौन दान देगा अब—-द्रोण—भीष्म—आ—ह— क्या होगा अब आर्यावर्त का—-हरि ओम—तुम धन्य हो कर्ण—-तुम धन्य- हो—-।’

(श्रीकृष्ण जब लौटे, तो उन्होंने कर्ण के रक्तरंजित खुले मुँह को देखा और जाते हुए ब्राह्मण को—-वे कर्ण के अनोखे दान से चकित रह गये। कर्ण भी प्रयाण कर चुके थे। उन्होंने बढ़ कर कर्ण की खुली आँखों को बंद किया, जो सूर्य की ओर निहार रहीं थी। सूर्य अस्त हो चुका था। विलाप करते उनके पुत्र के कंधे पर हाथ रख कृष्ण एकटक कर्ण को देखते रहे। उनकी आँखों से एक अश्रु निकल कर कर्ण के पैरों पर गिर पड़ा। यह तर्पण था महानायक का दानवीर को। वे उत्तरीय से अपनी आँख पोंछने लगे।)

(पटाक्षेप)

Language: Hindi
554 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जिंदगी
जिंदगी
Sangeeta Beniwal
कहा तुमने कभी देखो प्रेम  तुमसे ही है जाना
कहा तुमने कभी देखो प्रेम तुमसे ही है जाना
Ranjana Verma
निश्छल प्रेम
निश्छल प्रेम
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
हिंदी
हिंदी
Mamta Rani
शहीद -ए -आजम भगत सिंह
शहीद -ए -आजम भगत सिंह
Rj Anand Prajapati
Banaras
Banaras
Sahil Ahmad
पलटूराम में भी राम है
पलटूराम में भी राम है
Sanjay ' शून्य'
मौसम का मिजाज़ अलबेला
मौसम का मिजाज़ अलबेला
Buddha Prakash
*इस धरा पर सृष्टि का, कण-कण तुम्हें आभार है (गीत)*
*इस धरा पर सृष्टि का, कण-कण तुम्हें आभार है (गीत)*
Ravi Prakash
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
कवि रमेशराज
बुद्धिमान बनो
बुद्धिमान बनो
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
जिस कदर उम्र का आना जाना है
जिस कदर उम्र का आना जाना है
Harminder Kaur
Love is beyond all the limits .
Love is beyond all the limits .
Sakshi Tripathi
kavita
kavita
Rambali Mishra
सर्दी का मौसम
सर्दी का मौसम
Ram Krishan Rastogi
नज़रिया
नज़रिया
Dr. Kishan tandon kranti
ब्रांड. . . .
ब्रांड. . . .
sushil sarna
वो काजल से धार लगाती है अपने नैनों की कटारों को ,,
वो काजल से धार लगाती है अपने नैनों की कटारों को ,,
Vishal babu (vishu)
मुद्दत से संभाला था
मुद्दत से संभाला था
Surinder blackpen
संपूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों के द्वारा किये जाते हैं तथापि
संपूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों के द्वारा किये जाते हैं तथापि
Raju Gajbhiye
तुम कब आवोगे
तुम कब आवोगे
gurudeenverma198
साथ हो एक मगर खूबसूरत तो
साथ हो एक मगर खूबसूरत तो
ओनिका सेतिया 'अनु '
जिस तरीके से तुम हो बुलंदी पे अपने
जिस तरीके से तुम हो बुलंदी पे अपने
सिद्धार्थ गोरखपुरी
नदी
नदी
Kumar Kalhans
चुप रहना ही खाशियत है इस दौर की
चुप रहना ही खाशियत है इस दौर की
डॉ. दीपक मेवाती
छतें बुढापा, बचपन आँगन
छतें बुढापा, बचपन आँगन
*Author प्रणय प्रभात*
प्रथम दृष्टांत में यदि आपकी कोई बातें वार्तालाभ ,संवाद या लि
प्रथम दृष्टांत में यदि आपकी कोई बातें वार्तालाभ ,संवाद या लि
DrLakshman Jha Parimal
सच तो तेरा मेरा प्यार हैं।
सच तो तेरा मेरा प्यार हैं।
Neeraj Agarwal
भारत की देख शक्ति, दुश्मन भी अब घबराते है।
भारत की देख शक्ति, दुश्मन भी अब घबराते है।
Anil chobisa
काली स्याही के अनेक रंग....!!!!!
काली स्याही के अनेक रंग....!!!!!
Jyoti Khari
Loading...