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1 Sep 2017 · 6 min read

अनंत की यात्रा —

अनंत की यात्रा

गाँव के गलियरों मे बच्चो का शोर गुल थमने का नाम ही नहीं ले रहा था । जब कोलाहल ऊंचा होता गया एतो थल्ले पर बैठे बुजुर्गो ने डांट कर अपनी मौजदगी का अहसास करा दिया । शोरसहसा थम गया । और महीन गुफ्तगू एवम कानाफूसी मे बदल गया । गर्मियों की छुट्टियों मे जहां ये गलियारे हमेशा शोरगुल लड़ाई झगड़े तू तू मैं मैं से भरे होते हैए वहीं यार दोस्तो की गलबहिया व हंसी.मज़ाक से भी भरे होते हैं ।
अचानक उसने कहना शुरू किया । वो मेरा परम मित्र हुआ करता था । पढ़ायी दृलिखाई एखेल दृकूद बाजार व्यवहार मे वो हमेशा आगे रहता था उसका नाम दिलीप था । जब मुझे ये खबर मिली कि दिलीप भाई को हृदयाघात हुआ है तो सहसा यकीन ही न हुआ । मैं उससे मिलने कानपुर से उसके गाँव शंकरगढ़ आ धमका । घर मेनाते दृ रिश्तेदार अत्यंत हताश एवम उदास थे । दिलीप के अलावा उसकी पत्नी सारिका एवम दो बच्चे भी थे । जिनकी उम्र क्रमश रू10 वर्ष एवम 8 वर्ष थी । बड़े बेटे का नाम जीतू व छोटे बेटे का नाम बबलू था । उसके पिता का देहांत पहले ही हृदयाघात से हो चुका था । माँ वृद्ध हो गयी थी तथा साथ मे रहती थी । अच्छा खाता . पीता परिवार था । उसका किराने का व्यापार था जो अच्छा चल निकला था ए पत्नी सारिका भी उसका कामकाज बटाती थी । वह पढ़ी दृलिखी सुसंकृत महिला थी ए परंतु हमारा मित्र केवल मैट्रिक पास था । जब मैं उसके पास जाता तो सारे गम भूल जाता ।उसकी हंसी दृठिठोली मे सब तनाव गायब हो जाता था । अजीब सा बंधन था उसके साथ कि मन उससे मिले बिना बैचेन हो जाता था ।
इंसानियत का रिश्ता या मित्रता का बंधन एअबोध बचपन हम सब मे खूब पल्लवित पुष्पित हुआ था आज उसकी उम्र 56 वर्ष कि थी एऔर मेरी भी ।हम हमउम्र थे ।
उसने कहना शुरू किया ए गर्मियों कि छुट्टियों मे हम सब गुल्ली दृडंडा एकंचे क्रिकेट आदि कितने खेल खेलते थे । कभी उसे पीठ पर लाद कर मैं दांव देता कभी वो । वो कंचे खेलने का बहुत शौकीन था । एक दृएक करके मैं सब कंचे जीत लेता था । तब वह गुस्से मे कहता तुमने चीटिंग कि है । कभी दृकभी मैं अपनी तरफ से सफाई पेश करता एकभी व्यंग मे कह देता खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे ।
हम सब उन दिनो भरी दोपहरी मे दौड़ प्रतियोगिता काआयोजन कर रहे थे । प्रथम पुरुस्कार पेंसिल व रबर था । द्वितीय पुरुस्कार पटरी थी हमारा मानना था की हारना दृजीतना बड़ी बात नहीं है बल्कि प्रतियोगिता मे भाग लेना व खेल भावना का परिचय देकर दौड़ पूरी करना सबसे अच्छी बात है तब हमारा देश विश्व स्तर पर क्रीडा प्रतियोगिता मे फिसड्डी ही हुआ करता था । एवम स्पर्धा जीतना दूर की कौड़ी पाने के बराबर था ए तब गाँव मे खेल संसाधन न के बराबर थे । अत रूमजबूरन दौड़ या खोखो या कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता ही मनोरंजन या प्रतिस्पर्धा के साधन थे । ये वित्त विहीन संसाधन मे आते थे ।
हम सब ने दौड़ प्रारम्भ की । सबने भांति दृभांति से प्रयास कर दौड़ मे अव्वल आने का प्रयास किया । परंतु हमारे दिलीप भाई के भाग्य मे कुछ और ही लिखा था । वे बीच रास्ते मे गिर पड़े थे एकुछ प्रतियोगी इस आपाधापी मे आगे निकल गए ए परंतु मैं अच्छी कदकाठी का होने के वावजूद सबसे पीछे था । मेरा मित्र गिरा पड़ा था । मुझसे उसकी उपेक्षा न हो सकी । मैंने तुरंत उसे सहारा देकर उठाया । व चोटों का निरीक्षण किया उसके बाए टांग की हड्डी सफ़ेद चमक के साथ दिख रही थी । खाल फट गयी थी । भगवान ने हमारे मित्र को बाल दृबाल बचा लिया था । टांग टूटी न थी । अन्यथा उसकी सारी छुट्टिया बेकार हो जाती । हम उसे डाक्टर के पास ले गए व मरहम पट्टीकरवा कर उसे उसके घर छोड़ आए । वो दिन मुझे आज भी याद है एक अजीब संतोष व कशिश भरा समय था जब हमने उसे उसके घर छोड़ा । तब हमारी उम्र मात्र 15 वर्ष थी
सन सत्तर के दशक मे मुहम्मद अली मुक्केबाजों मे शुमार हुआ करते थे । हमारे यहाँ भी बॉक्सर बनने की होड लगी थी । हर्र लगे ना फिटकरी रंग चोखा । हमारे बड़े भाइयो ने बॉक्सर भाइयो के अद्भुत किस्से सुना कर हमे बॉक्सिंग के लिए प्रेरित किया । हम आपस मे घनिस्ट मित्र थे एपरंतु बड़े भाइयो की इस कूटनीति मे फस कर हम दोनों एक दूसरे के खिलाफ मुक्केबाज़ी मे ज़ोर आजमाइश करने को तैयार हो गए । मुक्केबाज़ी की रणनीति बनाई गयी । मैंने दिलीप भाई पर अटैक पर अटैक कर दिया । दिलीप भाई इस अटैक से हतप्रभ थे । उन्हे ये कतई उम्मीद ना थी की उनका परम मित्र इस बेरहमी से उनपर मुक्के बरसाएगा । उनकी भावनाओ को ठेस पहुंची थी । मैं इस मुक़ाबले को जीत कर भी अपनी मित्रता को हार गया था ।दिलीप भाई ने काफी समय तक बोलचाल बंद कर दी थी । उसका प्रश्नवाचक भावशून्य चेहरा जब भी मेरे सामने आता एमेरे से एक प्रश्न पूछता क्या ये एक मित्र वत व्यवहार था या खेलभावना के विरुद्ध शत्रुवत व्योहार । मैं उसकी आंखो के ये भाव पढ़ कर निरुत्तर हो जाता । आत्मग्लानि व पश्चाताप से मेरा मन फूटफूट कर रोने लगता था । मेरा मन पुन रू अपने मित्र से मिलने के लिए व्याकुल हो उठता था ।
समय बहुत बलवान होता है एनिर्दयी भी । कभी समय मरहम का काम करता है कभी चोटों पर नमक छिड्कने का काम करता है । जीवन मे समय किसी का एक सा नहीं रहा है उतार दृचढ़ाव एसफलता दृविफलता की कहानी है समय । भूत भविष्य के दो पाटो के बीच वर्तमान के रूप मे जीवित समय उमंग उत्साह व जीने की कला से भरपूर होता है । जिसने इसके हर पल को आनंद से जिया उसका अतीत भी सुनहरा और भविष्य भी होनहार होता है । यह समस्त दुखो की अनूठी औषधि है ।
हम अब युवा हो चुके थे । हमारी उम्र अब 30 वर्ष की थी । वोह अपने व्यवसाय मे व्यस्त हो गया और मैं अध्ययन मे । ऐसा कोई भी पल नहीं बीता था जब मुझे उसकी याद ना आयी हो । गर्मियों की छुट्टियो मे ही हम साल मे एक बार मिल पाते थे एजब मैं अपने गाँव वापस छुट्टिया मनाने जाता था ।
शाम के धूधलके मे बहती मंद बयार का सुख लेने हम अक्सर दूर सड़क पर निकल जाते थे । जब थक जाते तो पुलिया के मुंडेर पर बैठकर गपशप करके थकान मिटाते थे जब शाम को क्षितिज के उस पर सूरज छिप जाता हम वापस घर लौटते ।
समय बीतते समय नहीं लगता अब हम प्रोढ़ हो चुके थे उसके दो नन्हेमुन्ने बालगोपाल थे और मेरे भी ।
आज वह मृत्युशैया पर लेते लेटे लेटे अपने बचपन के मित्रो को याद कर रहा है । उसकी स्मरणशक्ति भूतकाल की घटनाओ को चित्रवत सजीव करती जा रही हैं । मैं सब कुछ जा न कर भी असहाय था । मेरा मित्र अपने अंतिम समय मे पहुँच चुका था जहां से लौटना मुमकिन नहीं था । मैं उसके अंतिम समय का मूक साक्षी था उसके हृदय की धमनियाँ अवरुद्ध हो चुकी थी । ग्रामीण परिवेश मे हृदयाघात का समय से उपचार करीबकरीब असंभव है । हृदयाघात एवम समय का अटूट संबंध है । समय ही जीवन है । जितने कम समय मे हृदयाघात के रोगी को उपचार मिल जाए उसके जीवित रहने की संभवना उतनी अधिक होती है । समय की बढ़ती अवधि के साथसाथ जीने की आशा भी क्षीण हो जाती है । मेरे मित्र को भी समय से उपचार नहीं मिल सका था । हृदयघात की पीड़ा कितनी तीव्र होती उसे भुक्तभोगी हीमहसूस कर सकता है।
हमारा मित्र भी उस रात्रि के प्रथम प्रहर मे हमे छोड़ कर अनंत की यात्रा पर निकाल पड़ा था । चिरंतन स्मृतियों ए असीम संभावनाओ एवम सपनों को अपनी पत्नी एवम बच्चो के मासूम कंधो पर छोड़ कर चल दिया था अनंत की यात्रा पर ।
मृत्यु शाश्वत है ए परंतु मृत्युपूर्व कुछ घटनाए आने वाली दुर्घटना का संकेत दे जाती हैं । मृत्युपूर्व मनुष्य के स्मृतिपटल पर भूतकाल की घटनाए चित्रलिखित सी साकार होने लगती है । यह कथानक मृत्युपूर्व स्मृति से संबन्धित है।

कहानीकार …. डा 0 प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

Language: Hindi
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